Add To collaction

यादों के झरोखे से लेखनी कहानी -14-Nov-2022 भाग 6

           दो जांटी बालाजी की यात्रा
          *********************
          अब हमने सालासर से आगे की यात्रा शुरू करदी। हमने राजस्थान मे स्थित  दो जाटी धाम बालाजी  जाने  प्रोग्राम बनाया  । दो जाटी बालाजी की कहानी भी अजीब है जिसे आप सुनकर आश्चर्य में पड़ जाओगे। इसकी कथा इस प्रकार है :-

           रामगढ़ फतेहपुर सड़क मार्ग पर दो जांटी बालाजी धाम इसका जीता जागता उदाहरण है। कुछ समय पहले तक वहां पर दो विशाल जांटी के वृक्षों के अलावा कुछ भी नहीं था। वह विशाल वृक्ष लगभग पांच सौ छः सौ साल पहले के है।

                    ऐसा कहाजाता है कि  पुजारी जी के कथनानुसार दो जांटी बालाजी धाम की स्थापना 6 अक्टूबर 1992 दशहरा मंगलवार को माननीय भैरों सिंह जी शेखावत और शंकराचार्य जी महाराज के कर कमलों के द्वारा की गई थी। उसी दिन से अखंड ज्योत जल रही है। इससे पहले यहां पर दो जांटी के विशाल वृक्ष थे। जो आज भी विद्यमान है। यहां पर हरियाणा पंजाब और राजस्थान से बहुत भक्त गण आते हैं और अपनी मन्नत पूरी कर जाते हैं। 

             जिस प्रकार से मकान की दहलीज होती है, उसी प्रकार सालासर जाने वाले भक्तगण दो जांटी बालाजी धाम को सालासर की दहलीज मानते हैं। पंडित जी कहते हैं कि लोगों के कहने के अनुसार यहां पर रामगढ़ चूरु रास्ते पर गुजरने वाले प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ आभास होता था। उनको यह महसूस होता था कि यहां पर कुछ है। उन पेड़ों की कटाई छटाई करने वाले व्यक्ति को कुछ नुकसान भी होता था। प्रभु दयाल जी बोचीवाल के पिता जी यहां पर प्याऊ लगाते थे, उनको बहुत फायदा भी होता था।

                         प्रभु दयाल जी ने अपने पुत्रों को उस दो जांटी के वृक्षों के पास में प्याऊ लगाने के लिए कहा। उनको आदेश दिया कि वहां पर प्याऊ लगाओगे तो आपको बहुत लाभ होगा। आपकी उन्नति होगी। उनके पुत्रों ने वहां पर प्याऊ लगाने का निर्णय किया। जब प्याऊ लगाने का इरादा पक्का हो गया तो आसपास में पानी नहीं होने के कारण कुआं खोदना पड़ा। जब कुआं खोदने का फाइनल हुआ तो कुएं के पास में बालाजी के मंदिर की स्थापना करनी जरूरी हो गई।

                 आज वह मंदिर दो जांटी बालाजी धाम के नाम से विश्व विख्यात हो गया है। प्रभु दयाल जी को व्यापार में बहुत अधिक लाभ हुआ और उन्होंने लाभ को मंदिर में ही लगाना शुरू कर दिया। यहां पर सबसे ज्यादा हरियाणा से भक्त गण आते हैं जो अपनी सफेद पोशाक के कारण अलग से ही पहचाने जाते हैं। जो शांति की प्रतीक है।
 

                      यहां पर अक्टूबर मास में दशहरे के समय और चैत्र मास की पूर्णिमा को मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें लाखों श्रद्धालु भारत के कोने-कोने से आते हैं और अपनी मन्नत पूरी करते हैं। यहां का सूर्यरथ जिसमें सात घोड़ों के द्वारा संचालित किया हुआ बताया है आकर्षण का केंद्र है। जिसको चारों तरफ से घूम कर देखने पर वह अपनी तरफ ही दौड़ता हुआ दिखाई देता है

       हमने भी दो जांटी  बालीजी की यात्रा आरम्भ करदी। 

         आगे का वृतांत कल के लेख में

यादों के झरोखे से २०२२

नरेश शर्मा "  पचौरी 

   20
5 Comments

Radhika

09-Mar-2023 12:59 PM

Nice

Reply

shweta soni

03-Mar-2023 10:21 PM

Very nice

Reply

अदिति झा

03-Mar-2023 02:37 PM

Nice 👍🏼

Reply